साहित्यकारों ने कलम से जला रखी थी क्रांति की ज्वाला
जिले के साहित्यकारों ने कविताओं के जरिये क्रांतिकारियों को देश पर अपनी हस्ती गंवाने के लिए अमृत पिलाया। उनमें कविताओं से जोश भरा। ब्रज साहित्य के मूर्धन्य कवि पंडित नाथूराम शंकर शर्मा ‘शंकर’ ने गुलामी की जंजीरों में जकड़ी मातृभूमि को व्यथित होकर लिखा – ‘बर वैदिक बोधबिलाय गयौ, छल के बल की छवि छूटि परी, पुरुषारथ, साहस, मेल मिटे, मत-मथन के मिस फूट परी, अधिकार भयौ परदेसिन कौ, धन-धाम धरा पर लूट परी, कवि शंकर आरत भारत पै, भय भूरि अचानक टूट परी’।
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